Sunday, August 26, 2012

मुसाफ़िर हूँ यारों

मुसाफ़िर हूँ  यारों 
लोगो के दिल तक है जाना 

चहूँ  और रहा ढूंढ़ 
पथ जिस पर है जाना 
क्या साधन अपनाऊँ, कैसे जाऊं
मुझे लोगो के दिल तक है जाना

बड़ी है यह कठिनाई 
हर व्यक्ती लगे मुझे अनजाना 
हमसफ़र ढूँढू, या खुद निकल जाऊं 
मुझे लोगो के दिल तक है जाना

कार्य कठिन है बड़ा
अपेक्षाओ को पूरा कर पाना 
आशीर्वाद पाऊँ की सफल कर जाऊं 
मुझे लोगो के दिल तक है जाना

हंसी का नहीं खेल 
हर व्यक्ती संग मुस्कुराना 
लतीफे सुनाऊँ या खुद बन जाऊं
मुझे लोगो के दिल तक है जाना 

सोच रहा बन डाकिया 
ले कर प्यारा सा अफसाना 
घर तक जाऊं, हर दर ठक ठकाऊँ 
मुझे लोगो के दिल तक है जाना 

या फिर बन पंछी 
दिखा के कैसे उड़ पाना 
सब को सिखाऊँ, उन का बताऊँ
मुझे लोगो के दिल तक है जाना 

ऐसे ले कर मीठे बोल
बन कर एक सुरीला गाना 
छु जाऊं, हर मन को जताऊँ 
मुझे लोगो के दिल तक है जाना 

कहो तो इतिहास बन
सुनाऊँ सबको किस्सा पुराना 
याद आऊँ, मानस पटल  छप जाऊं 
मुझे लोगो के दिल तक है जाना 

गर बन जाऊं लहू
बता सकू, कैसे है बहते जाना 
दौड़ जाऊं, राग राग में समाऊँ 
मुझे लोगो के दिल तक है जाना  

डगर भले लम्बी बहुत
हर दिल बन जाए मेरा ठिकाना 
मुसाफ़िर हूँ यारों, यही चाहूँ
मुझे लोगो के दिल तक है जाना 

लव  'मुसाफ़िर'



Thursday, August 23, 2012

आकाश के मुसाफ़िर

आकाश के मुसाफिरों...
कहाँ गए तुम सब...
उन्मुक्त गगन के राहगीरों...
कहाँ छुप गए तुम अब 

नभ की खिलखिलाहट क्यों है गुम 
चहकती आवाजों क्यों चुप हो तुम 
दिख नहीं रही वह लड़ी तुम्हारी
डगर अब खाली सी पड़ी बेचारी 

हवा से खेलने वाले ऐ नादान परिंदे 
क्यों नहीं दिख रहे पेड़ो पर तेरे घरोंदे 
आशियाना क्या बसा लिया कहीं और
उड़ रहा जाने तू आजकल किस ओर 

बिना तेरे सवेरा अब कुछ फीका सा लगे 
गोधुली  की लालिमा भी कुछ कम ही सजे 
रह तकते बीत रहे कितने मौसम फागन  
दाने भी अकेले बिखरे से पड़े अब हर आँगन  

कर बैठा ऐसी भूल मैं क्यूँ 
दूर हो गया तू मुझसे यूँ 
आगे बढने की इस होड़ मैं
सच पूछो बहुत पीछे रह गया...आज मैं इस दौड़ मैं...

एक कुटुंब के थे हम सब प्यारे 
 स्वार्थ से मेरे हो गए बंटवारे  
प्रकृति (माँ) कोस रही मुझ बच्चे को 
क्यों दूर किया तुझ नन्हे को  

राह तक रहे तेरी अपने द्वारे  
क्षमा कर लौट आ मेरे प्यारे 
नहीं तेरे बिन अस्तित्व कुछ मेरा 
आके लगा दे फिर अपने घर डेरा 

लव 
२३ August २०१२ 

Monday, July 30, 2012


समाचार पत्र 

प्रथम पृष्ट से हुआ आरम्भ
विचित्र, भयावह, कैसा हाहाकार है
यह माध्यम है सामयिकी का, या
यमलोक प्रकाशित पत्र समाचार है

पृष्ठों की लड़ी पलट पलट
ढूँढ़ते चक्षु आज सद्विचार है
झर झर बहने लगते अश्रु 
हर पृष्ट स्वयं अत्याचार है

अपेक्षा - हो जन चेतना जागरण 
परन्तु कैसा दिग्विकार है 
करता जो समाज चरित्र चित्रण
कर रहा असामाजिक व्यापार है

लेखनी जो जलाती प्रेरक ज्वाला
हो रही  कम धार है 
जिसके चलने से होती क्रांति
वह स्वयं आज लाचार है 

बढ़ रही पीड़ा थकन, तेरी
चरित्र व्यभिचार का शिकार है
समाज, संस्कृति, मानवता का संरक्षण 
मत भूल, तेरा भार है 
 
Lav /लव 
३० जुलाई २०१२